गौरैया के लाल पंजे / पूनम अरोड़ा 'श्री श्री'
तुम्हे लौटना होगा !
अपनी यौन इच्छाओं के साथ व्याकुल देह को रिक्त कर मुझसे आसक्ति के बंधन का निर्वाह करना होगा.
क्यों तुम मेरी मादक आत्मा की राह में खड़े हो?
उतर जाओ उन खाली सीढ़ियों से.
अपने डूबता हृदय को संभालो.
सुनो !
जासूसी उपन्यास पढ़ने वाले.
मैं एक गौरैया हूँ !
मेरे स्वर में ताज़ा और सुगन्धित मधु है.
और मैंने हत्या की है उन छोटे प्राणियों की
जिन्होंने मेरे स्वर को इतना तल्लीन बनाया है.
करनी पड़ी हत्या
क्योंकि उनका प्रेम मुझे डसता था.
पर मैं कसम खाती हूँ
मुझे दुःख हुआ था
बस इतना ही जितना तुम्हारी हत्या करने में होता.
तुम्हारा संहार कर मुझे तृप्ति मिलेगी.
मैं सच कहती हूँ.
हुगली नदी का जादुई जल मेरे हाथ में है.
उस जल की सौगंध.
बताओ किस रीति से हत्या करू तुम्हारी?
क्या बर्बाद कर दूँ तुम्हारी उम्र?
या किसी बंगाली बाबा से पुड़िया ले आऊं
ताकि तुम्हे खिला सकूँ मिष्टी दोई और चाय के साथ.
मैंने गिरीश घोष से जड़ी-बूटी तो खरीद ली है.
तुम्हारे यौनिक भूत की पिपासा का अंत करने के लिए.
गिरीश घोष ने पान खाते हुए मुझे सब विधि समझाई.
कि प्रेम का अर्थ बहुत गहन होता है
भूत की लकड़ी के तंत्र से कही ज्यादा गहरा और असरदार.
इस लकड़ी का काढ़ा कड़वा होता है थोड़ा
तो तुम अपनी जिव्हा की नोक से चखना
और अपने स्वर का मधु मिला देना.
हत्या के बाद मुझे सच में कोई ग्लानि नही हुई.
खाती हूँ तुम्हारी कसम.
मेरे भटकते प्रेमी !
तुम्हारी सूनी आँखे सदा मेरी स्मृति में रहेंगी.