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गौरैया से / शशि पाधा
Kavita Kosh से
अरी गौरैया, चुगले दाना
जब तक रहते खेत हरे ।
देर नहीं जब इन खेतों में
कंकर-पत्थर बिछ जाएँगे
गगन चूमते भवन मंजिलें
धूमिल बादल मँडराएँगे
अरी गौरैया, नीड़ बना ले
जब तक दिखते पेड़ हरे।
जंगल-पर्वत, बाग़- बगीचे
पोखर- झरने कल की बात
न आँगन, न लटके छींके
न तसला, न नेह परात
अरी गौरैया प्यास बुझा ले
जब तक नदिया नीर बहे
सुनसुन तेरी चहक-कुहकुही
आँख खुली थी धरती की
पत्ती-पत्ती डाली- डाली
छज्जा-खिड़की हँसती सी
अरी गौरैया, जी भर जी ले
जब तक निर्मल पवन बहे ।
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