भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गौ माँ / प्रीति समकित सुराना

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गोकुल कान्हा का धाम न होता।
जग में गौ माँ का नाम न होता...

अमृत मंथन से निकली गौ माते,
धर्मशास्त्र हैं यह बात बताते।
पूजी जाती है गाय युगों से,
संस्कृति यही भारत की सदियों से।
धर्म में भी ऐसा काम न होता,
गोकुल कान्हा का धाम न होता।
जग में गौ माँ का नाम न होता...

दूध दही घी माखन खाते हैं,
गोबर से आँगन लिपवाते हैं।
गौमूत्रजनित बनती औषधियाँ,
गोधन से सजती कृषि की दुनियाँ।
गोलोचन का भी काम न होता,
गोकुल कान्हा का धाम न होता।
जग में गौ माँ का नाम न होता...

मूक हमारी गौ माँ रहती है,
जाने पीड़ा कैसे सहती है
पैसे की खातिर काटी जाती,
कितने टुकड़ों में बांटी जाती।
पशुधन का कोई दाम न होता,
गोकुल कान्हा का धाम न होता।
जग में गौ माँ का नाम न होता...

आओ हम सब प्रण यह अब धारें,
गौवध रोकेंगे मिलकर सारे।
मजहब में दुनिया को क्यूं बांटे,
दोषी वो जो गौ माँ को काटें।
बदनाम खुदा या राम न होता,
गोकुल कान्हा का धाम न होता।
जग में गौ माँ का नाम न होता...