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ग्यान / श्याम महर्षि
Kavita Kosh से
बंद आलमारयां री
पोथ्यां मांय
ढूंढ रैयो हूं
ग्यान म्हैं
नागौरी ओकड़ जूं
बळती जाय रैयी
म्हारी समझ
लगोलग
ऐवड़ रो बोल
अर गीता रै
ग्यान रो फरक
करतो म्हैं,
बगतो जावूं
मनीषी दांई
अर सोचूं
मुगती रो मारग।
राजपथ री
पालकी माथै बैठया
फळसाग्यानी
पोमीजै अर
परमोद सिखावै
ओजूं ई चिन्तन री धार सूं
सम्मैं री बेलड़ी नैं
बाढ़ण नै हिचकूं म्हैं।