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ग्रहण / महेन्द्र भटनागर
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आज मेरे सरल चांद को किस
- ग्रहण ने ग्रसा है ?
- ग्रहण ने ग्रसा है ?
आज कैसी विपद में विहंगम
- गगन का फँसा है ?
- गगन का फँसा है ?
मौन वातावरण में बिखरतीं
- उदासीन किरणें,
- उदासीन किरणें,
रंग बदला कि मानों उठी हो
- घटा घोर घिरने !
- घटा घोर घिरने !
दूर का यह अँधेरा सघन अब
- निकट आ रहा है,
- निकट आ रहा है,
गीत दुख का, बड़ी वेदना का
- पवन गा रहा है !
- पवन गा रहा है !
अश्रु से भर खड़े मूक बनकर
- सभी तो सितारे,
- सभी तो सितारे,
हो व्यथित यह सतत सोचते हैं
- कि किसको पुकारें ?
- कि किसको पुकारें ?
साथ हूँ मैं सुधाधर तुम्हारे
- मुझे दुख बताओ,
- मुझे दुख बताओ,
हूँ तुम्हारा, रहूँगा तुम्हारा
- न कुछ भी छिपाओ !
- न कुछ भी छिपाओ !