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ग्रामोपासक बापू / भारत भाग्य विधाता / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'

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बापू तोरोॅ रोम-रोम मेॅ भारत के सब गाँव-गाँव रं,
तोरोॅ स्नेह जेठ के सर पर, बादल केरोॅ छाँव-छाँव रं ।

रातो दिन तोरोॅ आँखी में, चिन्ता निर्धन गाँवोॅ के
कादो आ कीचड़-माँटी में गोड़ घिसटतेॅ पाँवोॅ के ।

लाखोॅ-लाख गाँव के भारत दुख सेॅ ग्रस्त, विपद के धाम,
युग-युग सेॅ सदियो सेॅ जे लेॅ रहलोॅ छै विधियो तक वाम।

नै रास्ता के ठोॅर-ठिकाना हिन्नेॅ-हुन्नेॅ गूहे-मूत,
एक रोग नै, ढेर किसिम के, सालो भर ही लागले छूत ।

नै डाक्टर, नै अस्पताल ही वैद्य-हकीमो के नै बास,
देखी केॅ गाँधी जी हहरै; गाॅमोॅ के हेनोॅ उपहास ।

कहीं कुआँ, तेॅ पोखर नै छै, कहीं खदैये सेॅ लै काम,
जहाँ गन्दगी के बासोॅ छै कूड़ा, कर्कट, गोबर-धाम ।

एक कुँआ पर सौ घर ठाड़ोॅ पोखर पर होनै केॅ भीड़,
एक गाछ के एक ठारी पर बगरो-मैना सबके नीड़ ।

जे पोखर के पानी पीयै ढेर-मवेशी भोरे शाम,
ओकरे पानी गाँववासियो, पीयै, जहाँ धुलावै घाम ।

देखी केॅ गाँवोॅ के दुख ई कपसै बापू केरोॅ प्राण,
रात-दिवस बस एक्के चिन्ता, यै सेॅ मिलतै केना त्राण ।

बापू सोचै, जब तक दुख सेॅ गाँवोॅ केॅ नै त्राण मिलै छै,
स्वच्छ ग्राम के सपना सब के, मन-मानस में जाय खिलै छै।

तब तांय बात स्वराजो केरोॅ आधे-आधे समझोॅ लोग,
पर ई दुख ठो गामे लेली बाकी भोगै भोगे भोग ।

बापू रोॅ सन्देश यही तेॅ स्वअवलम्बन; सेॅ ग्राम सुधार,
खाली गाँधी ही नै, सब्भे यै पर आवी करौ विचार ।

गाँव लगै जों मन्दिर नाँखि ग्राम देवता करतै वास,
हेनोॅ की निधि छै जग में, जेकरोॅ की होतै नै रास ।

एकरोॅ लेॅ ई बड़ी जरूरी, नवयुवको दै यै पर ध्यान,
जे कुछ पैलेॅ छै यैं बाहर, गाॅमोॅ मेॅ बाँटौ हौ ज्ञान ।

गाॅमोॅ के लोगोॅ केॅ युवकें, नै समझौ एकदम्मे मूढ़,
ई सब तेॅ तुलसी, कबीर के सब समझै छै अर्थो गूढ़ ।

अगर जरूरत छै कुछुवो तेॅ, दै के कुछ हेने ठो ज्ञान,
मिटेॅ गरीबी गामोॅ केरोॅ, सुख के साधेॅ सब संधान ।

खेती केरोॅ तौर-तरीका, आरो वै में देशी खाद,
जों किसान ई जानी लेतै बढ़तै माटी केरोॅ स्वाद ।

हेनै केॅ गामोॅ-गामोॅ मेॅ जों जागै छै ग्रामोद्योग,
कहाँ ठहरतै भूख गरीबी, कहाँ ठहरतै कोनो रोग ।

छोटोॅ-छोटोॅ कामोॅ सेॅ गामोॅ के किस्मत के उत्थान,
आरो एकरोॅ लेॅ तेॅ नहिये आवै वाला छै भगवान ।

हमरै सब केॅ मिली जुली केॅ गाँव बदलना छै आबेॅ,
वही स्वराज कहैतै सच्चा जे गामोॅ के भाग्य बनावेॅ ।

बापू रोॅ सन्देश अभी भी गूंजै छै कोण्टा कोना मेॅ,
प्रजातंत्रा गाँमोॅ में ऐतै तेॅ सुगन्ध समझोॅ सोना मेॅ ।

गाँमोॅ के हर घर केॅ घर संग, हर हाथोॅ के रोजगार भी,
शिक्षा पावै के सुविधा जों तेॅ निरोग के खुलेॅ द्वार भी ।

ई नै मिलै तेॅ की स्वराज जों सत्तै के हाथोॅ के खेल,
सुख सौभाग्य करै छै जों नै गाँवोॅ के लोगोॅ सेॅ मेल ।