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ग्राम्य चित्रण / भोलानाथ गहमरी

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काँट –कुश से भरल डगरिया, धरीं बचा के पाँव रे
माटी ऊपर, छानी छप्पर, उहे हामरो गाँव रे…..

चारों ओर सुहावन लागे, निर्मल ताल-तलैया,
अमवा के डाली पर बैठल, गावे गीत कोइलिया,
थकल-बटोही पल-भर बैठे, आ बगिया के छाँव रे…

सनन –सनन सन बहे बायरिया, चरर-मरर बंसवरिया,
घरर-घरर-घर मथनी बोले, दहिया के कंह्तरिया,
साँझ सवेरे गइया बोले, बछरू बोले माँव रे…….

चान-सुरुज जिनकर रखवारा, माटी जिनकर थाती,
लहरे खेतन, बीच फसलीया, देख के लहरे छाती,
घर-घर सबकर भूख मिटावे, नाहीं चाहे नाव रे…….

निकसे पनिया के पनिघटवा, घूँघट काढ़ गुजरिया,
मथवा पर धई चले डगरिया, दूई-दूई भरल गगरिया,
सुधिया आवे जो नन्द गाँव के रोवे केतने साँवरे……

तन कोइला मन हीरा चमके, चमके कलश पिरितिया,
सरल स्वाभाव सनेही जिनकर, अमृत बासलि बतिया,
नेह भरल निस कपट गगरिया, छलके ठांवे-ठांव रे……….