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ग्रीन रूम / स्वरांगी साने
Kavita Kosh से
1.
केवल तैयार होने
के लिए बना था
ग्रीन रूम
कि
मंच पर जाते ही
परे रख सके अपने आप को।
2.
रोशनी ही रोशनी
हर कोण से आती हुई
ताकि ठीक से
देख सके
वो अपना रेशा-रेशा
दबा सके सारा द्वंद्व
भीतर ही भीतर।
3.
एक बाल
निकल रहा था चोटी से बाहर
अभी भी दिख रहा था आँखों के नीचे
कालापन
और
लाली कुछ कम लगी थी
होठों पर
ये आईना क्या दिखा रहा था उसे
और वो
क्या देखना चाह रही थी
न आईने को पता थी
इसके मन की बात
न उसे आईने की।