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ग्रीष्म केॅ वसन्त रोॅ संदेश / ऋतु रूप / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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ई केन्होॅ संताप छेकै
ई केकरोॅ देलोॅ अभिशाप
कि वैशाख एत्तेॅ तपलोॅ छै।

नै ई केकरो संताप
नै केकरो अभिशाप
ई ग्रीष्म के मनो के ही ताप छेकै
कि नवमल्लिको तांय झुलसी गेलोॅ छै।

वैशाख अभी आरो तपते
जेठ ओकरौ सेॅ ज्यादा
कैन्हेकि ग्रीष्म के देह आरो तपतै
जब तांय कि ओकरोॅ दुख
लोर बनी-बनी केॅ नै ढरकी जाय।

ग्रीष्म के ई हाल देखी केॅ
सरंगोॅ मेॅ उड़ते बादल के एगो उजरोॅ टुकड़ा
देलेॅ छै केकरो सनेश
तहीं सेॅ तेॅ
ग्रीष्म के चारो दिश खिली गेलोॅ छै
कंचन केतकी के उन्मादित सुगन्ध
आरो ठामे ठाम शिरीष के मतैलोॅ गंध
तपतेॅ ग्रीष्म के शीतलता लेॅ।