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ग्रीष्म बाघे नांकी एैलोॅ छै / कुमार संभव
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ग्रीष्म बाघे नांकी एैलोॅ छै
भोरे से झाड़ी झुंड झरकैनें
धरती के कण-कण में आग लगैनें,
सगरो परताप सिरिफ तोरे छौं
ऐलों छोॅ पथिक मुँह झुलसैनें।
बिन्डोवो, लू साथें एैलोॅ छै
ग्रीष्म बाघे नांकी एैलोॅ छै।
सुख वसंत के कतना प्यारोॅ छेलै
पिया साथ रजनी जी भर खेलै छेलै,
चाँद-चाँदनी के सेज सुहानोॅ
चंद्रकिरण के झूला झूलै छेलै,
तन-मन उखबीख होय गेलोॅ छै
ग्रीष्म बाघे नांकी ऐलोॅ छै।
नदी, नहर जग सौसे सूखलोॅ छै
प्रचंड ज्वाला जाल पसरलोॅ छै,
पथ-पथिक सबके अरमान बिखरलोॅ छै
घर आंगन सगरो धूरा सें धूसरैलोॅ छै,
ग्रीष्म भाग में जलना लिखलोॅ छै
ग्रीष्म बाघे नांकी एैलोॅ छै।
