घघ्घो रानी कत्तेॅ पानी / अमरेन्द्र
घोघ्घो रानी, कत्तेॅ पानी ? छोड़ोॅ कक्का वहेॅ पिहानी ।
हाल सुनाबोॅ घर-देसोॅ के, जोॅर-जमीनोॅ के केसोॅ के
अबकी खेती केहनोॅ रैहलौं, दादा ऐलौं की नै ऐलौं
हुनका तेॅ पैसे के धुन छै, आरो की हुनका में गुन छै
बूढ़ोॅ बाबू आरो माय के, केना चलै छै हुनकोॅ खाय के
दादा कुछ भेजै छै की नै, हमरा पैसा मिलतै जेहनैं
भेजी देबै; इखनी तेॅ बसµसौ टाका में पाँच परानी
घोघ्घो रानी, कत्तेॅ पानी ? छोड़ोॅॅ कक्का वहेॅ पिहानी ।
अभियो की पोखरी में फूलैµ कमल, गाछ सें बच्चा झूलै
अभियों की इसकूल के पीछू निकलै छै गोजरैठोॅ-बिच्छू ?
की अभियों ईमली गाछी पर, भूत देखै छौ रात ऐला पर
कुआँ खनैलौं की नै आपनोॅ, मंगर का के मोॅन छै कैहनोॅ
मेला पर दंगल अभियों की लागै छै । देखबोॅ कभियो की !
काका हमरोॅॅ देखिया लेलाµरात जगै छी, मरौं बिहानी
घोघ्घो रानी, कत्तेॅ पानी ? छोड़ोॅ कक्का वहेॅ पिहानी ।