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घटाएँ छँटीं/ ज्योत्स्ना शर्मा
Kavita Kosh से
9
बरसे सुधा
चाँदनी की चाँदनी
नभ बिछाए
महकी रातरानी
यूँ धरा मुस्कुराए।
10
तेरा मिलना
ज्यूँ दमकें सितारे
मन की धरा
कलियाँ खिल उठीं
आज अम्बर भरा ।
11
घटाएँ छँटीं
सज गया धनक
मन बावरे !
तेरे हिस्से आई है
फिर भी क्यों कसक ।
12
दिल पे मेरा
बस ही नहीं जब
कैसी लाचारी ?
कहने को मेरा ये,
है जागीर तुम्हारी !
13
नज़रें उठीं
ज्यों चमके सितारे!
झुक ही गईं
लो मेरी निगाहें भी
सजदे में तुम्हारे ।
14
मन-अम्बर
मुहब्बत का चाँद
छुपे न कभी
यूँ ही रूठें , मनाएँ
उन्हें सौ-सौ दुआएँ ।
15
खूब खिलना
महक ,मुस्कुराना
कोई न डर
कटेगी काली रात
कब होगी सहर ?
16
गुड़िया घर
बना ख़ुद मिटाया
क्या सुख पाया ?
देकर छीन लिया
फिर कैसे मुस्काया ?