उठ गए डेरे
यहॉं से धूप के
डोलियॉं बरसात की आने लगी हैं।
चल पड़ी हैं फिर हवाएँ कमल-वन से,
घिर गए हैं मेघ नभ पर मनचले,
शरबती मौसम नशीला हो रहा
तप्त तावे-से तपिश के दिन ढले
सुरमई आँचल
गगन ने ढँक लिए
फिर घटाएँ जामुनी छाने लगी हैं।
आह, क्या कादम्बिनी है, और ये
अधमुँदी पलकें मदिर सौदामिनी की
इंद्रधनुषी देह, बादलराग गाती
सॉंस जैसे कॉंपती है कामिनी की
पड़ रही जब से
फुहारें चंदनी
आँसुओं में कुछ नमी आने लगी है।