भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घड़ा ए घड़े पै दोघड़ चन्दो पाणी नै जाये जी / हरियाणवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घड़ा ए घड़े पै दोघड़ चन्दो पाणी नै जाये जी
आगे फोज मुगल पठान की चन्दो पकड़ी जाये जी
उड़दी जान्दी चिड़िया एक सन्देसा ले जाये जी
बाप मेरे नै नूं कहो थारी धी पकड़ी जाये जी
घुड़ला ले ल्यो डेढ़ सौ ऊंट ले ल्यो लख चार जी
बेटी छोड़ो चन्दरावली बाई राजकंवार जी
हम ना छोड़े चन्दरावली रानी बनै राजकंवार जी
घर जा बाबल आपणे राखूं तेरी मैं लाज जी
मुगल ने पीठ फिराई ओ तम्बू में ला दई आग जी
तम्बू जल गया जल गयी चन्दरावली राजकंवार जी
तारा पीहर अर सासरा तरी चन्दरावली राजकंवार जी