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घड़ा / गिरीश पंकज
Kavita Kosh से
मिट्टी का मैं एक घड़ा हूँ,
आता सबके काम बड़ा हूँ ।
क्या ग़रीब, क्या पैसे वाले,
सब हैं मुझको रखने वाले।
छूआछूत को दूर भगाने,
चौराहे पर रोज़ खड़ा हूँ ।
मिट्टी का मैं एक घड़ा हूँ,
आता सबके काम बड़ा हूँ ।