भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घड़ी’क रोवै घड़ी’क गावै सांस / सांवर दइया
Kavita Kosh से
घड़ी’क रोवै घड़ी’क गावै सांस
नित नुंवा तमाशा दिखावै सांस
आप तो पिदै कोनी घड़ी भर ई
मिनख नै अष्टपौर पिदावै सांस
बादळ देख नाचै ऐ मोर जिंयां
थे आवो तो नाचै-गावै सांस
‘खो’ मिलतां ई भागै छोरो जिंयां
सांस लारै भागती आवै सांस
लागै थांरी आदत सीखगी आ
आवण री कह कोनी आवै सांस