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घड़ी-घड़ी मेरा दिल धड़के / शैलेन्द्र
Kavita Kosh से
घड़ी घड़ी मेरा दिल धड़के
हाय धड़के क्यों धड़के
आज मिलन की बेला में
सर से चुनरिया क्यों सरके?
घड़ी घड़ी मेरा दिल धड़के
सारे उमर के बदले मैं ने
माँगी थी ये शाम रे
आज यहीं रह जाऊँगी मैं
उनकी बाहें थाम के
प्यार मिला आँचल भर के
हाय धड़के क्यों धड़के
आज मिलन की बेला में
सर से चुनरिया क्यों सरके?
घड़ी घड़ी मेरा दिल धड़के
आज पपीहे तू चुप रहना
मैं भी हूँ चुप चाप रे
मन की बात समझ लेंगे
साँवरिया अपने आप रे
देख ज़रा धीरज धर के
हाय धड़के क्यों धड़के
आज मिलन की बेला में
सर से चुनरिया क्यों सरके?
घड़ी घड़ी मेरा दिल धड़के