एक कप चाय पर
ऑफिस को सरपट भागती
कस्बाई कामकाजी महिलाएं
घड़ी की सेकेंड वाली सुई होती हैं
घर संवार
आड़ी तिरछी साड़ी की प्लेट सरिआती
निकलती हैं जब मुरुम वाली सड़कों पर
तो सूरज भरता है अपनी लाली
इनके गालों पर
स्कूटी, सिटीबस और पैदल
काम पर जाती ये औरतें
इस हड़बड़ी में भी बचाकर चलती हैं
अचानक आ गए रास्ते के जीवों को
वे बोती चलती हैं
आसपास की जमीन पर करुणा के बीज
ऑफिस के बायोमेट्रिक स्क्रीन के कोने में
तेजी से भाग रहे समय पर टंगा इनका मन
हाथ भर की दूरी से गुजरते
तेज रफ्तार ट्रक की आवाज को
नहीं सुन पाता
दो मिनट की देर और हेड की आंखों में
खुद के बेबस चेहरे को
नजरअंदाज करने का हुनर इन्हें खूब आता है
काम पर जाते
इनके सर के पल्ले
अब आ गए है कांधे पर
और भर कलाई चूड़ियो की जगह
ले ली है रिस्टवाच ने
घर - बाहर दोनो को साधती
कस्बाई औरतों का
काम पर निकलना और आत्मनिर्भर होना
इस समय का बड़ा दृश्य है