घड़ी में समय / स्वप्निल श्रीवास्तव
हर देश की घड़ी में बजता है
अलग-अलग समय
दिल्ली की घड़ी में जो समय है
वह रावलपिण्डी की घड़ी से नहीं मिलता
हो सकता है वे समय पर नहीं
हिंसा में यक़ीन करते हो
वाशिंगटन और पेचिंग की घड़ियों में
समय और विचार की दूरी है
इतिहास को ले कर कई असहमतियाँ हैं,
दुनिया भर के दलालों और तस्करों की घड़ियों में
एक जैसा समय बजता है
वे समय से ज़्यादा अपने इरादे पर भरोसा
करते हैं
उनके दम पर चलती है दुनिया की
अर्थव्यवस्था
बादशाह की घड़ी का समय जनता की घड़ी से
हमेशा अलग होता है
वे समय को सुविधानुसार आगे-पीछे खिसकाते
रहते हैं
वे अपने वजीरों को भी सही समय
नहीं बताते
तानाशाह की घड़ी में समय उसकी मरज़ी से
चलता है
उसके इशारे पर नाचती हैं रक्तरंजित सूईयाँ
ग़रीब मुल्कों में बच्चों के पैदा होने का
समय पढ़ना मुश्किल होता है
पर जानना आसान है कि उस के जन्म की तारीख़
के आसपास होगा उस की मृत्यु का समय