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घड़ी हरख भरी / सांवर दइया
Kavita Kosh से
अचाणचक आवै हिचकी
बंध जावै एक अदीठ पुळ
ईं खुणै सूं बीं खुणै
देखूं म्हैं-
बिन्नै सूं भाज़ी आवै तूं
इन्नै सूं म्हैं
बीच पुळ
बाथां भेटा हुवां आपां
सांसां सागै गुंथ जावै
सांसां रा तार
थिर हुयोड़ो बगत
थिर ई रैवै
आ घड़ी हरख भरी
औ ई उच्छब
औ ई लाखीणो तिंवार
आपां मनावां बारम्बार !