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घड़ी / सूर्यकुमार पांडेय
Kavita Kosh से
टिक टिक गाती चली घड़ी,
समय बताती चली घड़ी ।
बिना रुके दिन-रात चले,
सदा समय के साथ चले ।
राह दिखाती चली घड़ी ।
सुइयाँ कहतीं नेक रहें,
आपस में हम एक रहें ।
प्यार लुटाती चली घड़ी ।
छोटा-बड़ा भेद कैसा,
सबका काम एक जैसा ।
यही सिखाती चली घड़ी ।