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घण्टा बज उठा दूर कहीं / रवीन्द्रनाथ ठाकुर

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घण्टा बज उठा दूर कहीं।
नगर के अभ्रभेदी आत्म घोषणा की
मुखरता मन से हो गई लुप्त,
आतप्त माघ की धूप में अकारण देखा चित्र एक
जीवन यात्रा के प्रान्त में जो अनतिगोचर था।
गूंथ-गूंथ ग्रामों को खेतों की पगडण्डियाँ
चलती चली गई हैं न जाने कितनी दूर तक
कहीं-कहीं नदी तट का सहारा ले।
प्राचीन अश्वत्थ तले
नदी के घाट पर बैठा है यात्री दल
पार जाने की आशा लिये;
पास ही लग रहा हाट का बजार है।
गंज के घास फूंस टीन मिट्टी के झोंपड़ी में
गुड़ की भरी गागरों की लग गई कतारे है;
चाट-चाट जाते है घ्राण लुब्ध गाँव के कुत्ते सब।
भीड़ कर रही है मक्खियाँ।
सड़क में ऊपर को किये मुँह पड़ी है बैल गाड़ियाँ
बोझ लादे पटसन का,
गट्ठर खींच एक-एक कह कह के रामे-राम
आड़त के आँगन में तौल रहे तुलाराम।
बँधे खुले बैल सब चर रहे घास और
पूंछ का चँवर ढोर उड़ा रहे मक्खियाँ।
जहाँ-तहाँ सरसों के ढेर लगे
कर रहे प्रतीक्षा है गोलों में जाने की।
मछुओं नावें आ आकर भिड़ रही घाट पर,
मड़रा रहीं चीलें है मछलियों के ठाठ पर।
महाजनी नावें भी ढालू तट पर है बँधी हुई।
बुन रहे मल्लाह जाल नावों की छत पर बैठ घाम में।
नदी पार कर रहे किसान हैं
भैसों की पीठ पर साथ-साथ तैरकर।
पार के जंगल में दूर स ेचमक रहा मन्दिर का शिखर है
प्रभात सूर्य ताप में।
खेत और मैदान के अदृश्य उस पास में
चलती है रेल गाड़ी क्षीण से भी क्षीणतर
ध्वनि रेखा खींचकर आकाश बातास में,
पीछे-पीछे धुआँ छोड़ फहराती हुई जा रही
दूरत्व विजय की लम्बी विजय पताका।

याद उठ आई, कुछ नहीं, गहरी निशीथ रात की,
गंगा के किनारें बँधी नाव थी।
चाँदनी से चमचमा रहा था नदी का जल,
घनीभूत छाया मूर्ति निष्कम्प अरण्य तट पर,
किंचित कहीं दिखाई दे जाती थी दिआ की लौ।
सहसा मैं उठा जाग।
शब्द शून्य निशीथ के आकाश में उठी एक गीत ध्वनि तरूण किसी कण्ठ से,
दोैड़ रही उतार के बहाव में तन्वी नाव तीव्र वेग से।
क्षण में अदृश्य हो गई वह;
दोनों पार स्तब्ध वन में जागती रही गीत-ध्वनि;
चन्द्रमा का मुकट पहने अचंचल निशीथ प्रतिमा
निवाक हो पड़ी रही पराभूत निद्रा की शय्या पर।

चलते-चलते पथिक मन देखता है कितने दृश्य
चेतना के प्रत्यन्त प्रदेश में,
क्षणभंगुर हैं, फिर भी तो मन में आज जाग जाग उठते सब;
एक नहीं, अनेक ऐसे उपेक्षित विचित्र चित्र
और जीवन की सर्व शेष विच्छेद वेदना का
स्मरण करा रहा है आज दूर का यह घण्टा रव।

‘उदयन’
संध्या: 31 जनवरी, 1941