घण्टियों की ढलाई (चार) / यारास्लाव सायफ़र्त / अनिल जनविजय
अगर मेरी स्मृति धोखा नहीं देती
तो अप्रैल के अन्त में किसी दिन
जब दोपहर हो चुकी थी
अहाते में धोबन कपड़ों को धोने के बाद
उन्हें रस्सी पर लटका रही थी
अचानक उसने दोनों हाथों से
चादर को उठाया ऐसे
मानो आसमान को उपहार में दे रही हो
टप-टप पानी टपकने लगा था ।
लेकिन बारिश इतनी कम हुई
जैसे बजा हो
बच्चों का खिलौना पियानो
कुल बारह चाबियों वाला ।
जल्दी ही शाम हो गई
और फिर अन्धेरा छा गया
रस्सियों पर लटके कपड़े नहीं सूख पाए
और सफ़ेद चान्द चमकने लगा रस्सियों पर
अन्धेरे में डूबे पेड़ों के पीछे से ।
किसी ने उसे देखा
माख़ोवा झील में नहाते हुए ।
उसे देखकर
उसने कमीज़ उतार कर लहराई
अपनी बाँहों को हिलाया ज़ोर-ज़ोर से ।
यहाँ गीत गाया जा सकता था
लेकिन वह अभी शुरू नहीं हुआ है ।
रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय
लीजिए, अब यही कविता रूसी भाषा में पढ़िए
Ярослав Сейферт
Отливка колоколов 4
То было за полдень,
где-то в конце апреля,
если не изменяет память мне.
Во дворе прачка вешала белье
и так вздымала простыни обеими руками,
как будто небу предлагала их,
когда капля по капле стало накрапывать.
Но дождь был еще краток и смешон,
как детское пианино
с двенадцатью клавишами.
Вскоре совсем стемнело.
Белье не высохло,
а из-за тьмы дерев взметнулась над веревками
сияющая белая луна.
Кто-то ее заметил,
когда она купалась в Маховом озере,
а рубашки мчались, махая рукавами,
ей навстречу.
Тут могла бы начаться песня.
Но не началась пока!
перевод: Верат Олоз