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घनघोर घटा / कस्तूरी झा ‘कोकिल’

घटा घनघोर उमड़ै हो।
मन-मयूर छम-छम-छम नाचै,
रून झुनुन-झुमुन पैजनियाँ बाजै।
सूखी धरती ताल तलैया

मन-मन भीजै हो,
घटा घनघोर उमड़ै हो।

ढोल झाल घुँघरू बजबाबोॅ,
हल तैयार फार पिटबाबोॅ।
पालोॅ उठाय चलै चरका जब,

हिरदै हरसै हो,
घटा घनघोर उमड़ै हो।

सावन मास पूरवा जब डोलै,
रोपनी मधुर गीत में झूमै।
”जल्दी रोप, चलें घोॅर जल्दी,

मनमा थिरकै हो,
घटा घनघोर उमड़ै हो।
-26.07.1969