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घनश्याम कन्हैया के दरबार चली आयी / रंजना वर्मा
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घनश्याम कन्हैया के दरबार चली आयी।
बिरहा का ताप ऐसा बिन आग जली आयी॥
दिन-रात जलाते हैं रवि चंद्र निठुर बन कर
शीतल न हुई काया मझधार चली आयी॥
सहकार न बौराये कोकिल न कहीं कूके
मत बोल उठे पपिहा महुए पर कली आयी॥
संसार विटप भटकूँ तुम बिन न जिया जाये
मैं श्याम मिलन के हित कांटो में पली आयी॥
तुम एक अकेले हो नाथा था नाग जिसने
है विश्व विरद गाता सुन तेरी गली आयी॥
है श्याम सुना जब से तुम वेणु बजाते हो
मैं तेरे सुरों में अब अभिराम ढली आयी॥
हो प्यास जगा देते संतोष नहीं मिलता
हमको भी सता लेना दुनिया से छली आयी॥