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घन रहित नभ नील प्रगट्यो धौं / रमादेवी

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घन रहित नभ नील प्रगट्यो धौं सखी शृंगार है।
रेख केसर की खरी भ्रूशीलता की भार है॥
चंद्र चंद्रन चंद्रिका की दामिनी द्युति जालिमा।
बाल दिन कर भाल रोरी की मनोहर लालिमा॥
मैं थकी छवि देख कर धौं आज मारुत धीर है।
देखु आली छवि निराली आज जमुना तीर है॥