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घमंड क के तहार नाम / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’

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घमंड क के तहार नाम ना लीं,
ई बात तूं त जानेलऽ हे अंतर जामी,
कि हमरा मुँह से तहर नाम कइसन सोभे ला!
जब सब लोग हमार हँसी उड़ावेला
तब हम सोचे लागिले, हे नाथ,
कि हमरा कंठ से तहार नाम कइसे निकली।
ई बात तूं त जाने लऽ हे अंतरजामी,
कि हमरा मुँह से तहार नाम कइसन सोभेला!
तहरा से हम बहुत दूर बानीं,
ई जानल अब बाकी नइखे।
नाम गान का बहाने
आपन परिचय मत देवे लागीं,
मने-मने एही लजे मरऽ तनीभें।
दया क के झूठ अहंकार से
हमरा के बचा ल, नाथ!
हमरा लायक जवन जगह बा
तवने हमरा के दे द।
सबका नजर से हमरा के दूर हटा के
अपना नजर द।
हमार पूजा खाली तहार दया पावे खातिर बा
दोसरा के घरे मान पावे खातिर ना।
धूरा माटी में बइठल-बइठल
हम रोज तहरे के पुकारीं।
रोज नया अपराध करीं
तबो तहरे के पुकारीं।