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घरअ पिछुआर मे मरचैया के गाछ / अंगिका लोकगीत

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

दरवाजे पर पटहार, पटवा आया। बेटी ने अपने पिता से आवश्यक चीजों की खरीद देने का आग्रह किया। पिता ने उत्तर दिया- ‘बेटी, तुम्हारा जन्म निर्धन के घर में हुआ है और निर्बुद्धि से तुम्हारा विवाह कर दिया गया है। इसलिए, तुम्हें इन चीजों की आशा नहीं करनी चाहिए।’ उसका पति वहीं था। वह अपने ससुर से अपमानित होना केसे पसंद करता तथा अपनी प्रेयसी की इच्छा की पूर्ति भी कैसे नहीं करता? उसने मोल-भाव करके अपनी पत्नी के लिए उसकी इच्छित चीजों को खरीद दिया और वह इठलाती हुई उन चीजों को दूसरों को दिखलाने लगी।

घरअ पिछुआर में मरचैया<ref>मिर्च</ref> के गाछ, ओहि तरें पटेबा<ref>गहना गूँथने तथा कुछ महिलोपयोगी चीजों को बचने वाली एक जाति</ref> धरले धेयान।
सुपती खेलैतेॅ गेलें तोहें, कनियान दाय सोहबी।
परि गेलै हे सोहबी, पटेबा मुखें हे डीठ<ref>मुख पर दृष्टि पड़ना; दृष्टि</ref>॥1॥
सोहबी बैठैले बाबा बड़<ref>बड़े</ref> बाप के बाबा, हमें लेबै हो बाबा चितरा के सरिया<ref>चित्रित साड़ी; छापेदार साड़ी</ref>।
हमें लेबै हो बाबा संखा चूड़ी बहियाँ, हमें लेबै हो बाबा मोती के मल्ला<ref>माला</ref>॥2॥
निरधन कोखो गे बेटी जनम लेले, छोटबुधिया घरअ कैलाँ<ref>किया</ref> बिहा<ref>विवाह</ref>।
कइसे तोहें पैभें गे बेटी चितरा के सरिया, कइसे पैभें मोती मल्ला॥3॥
एतना बचनियाँ जे सुनले दुलरैते बाबू, मोलाबे<ref>मोल करने; दर-भाव पूछने</ref> लागल चितरा के सरिया।
मोलाबे लागल हे संखा चुड़िया, मोलाबे लागल हे मोती मल्ला॥4॥
कत्ते दाम लेभै<ref>लोगे</ref> पटेबा चितरा के सरिया, कत्ते दाम लेभैं संखा चुड़िया।
कत्ते दाम लेभैं रे पटेबा, मोती गिरमल हरबा<ref>विशेष प्रकार का हार</ref>॥5॥
दस टका<ref>रुपया</ref> में देबौ हो बाबू, चितरा के सरिया।
पचोसे देबौ संखा चूड़ी, छतीसे देबौ हे मोती मलबा॥6॥
पहरिय ओढ़िये गेली, गे कनियान दाय गे सोहबी।
देखाबे लागली चितरा के सरिया, देखाबे लागली संखा चुड़िया।
लटकाय देखाबे सोहबी, गले मोती गिरमल हरबा॥7॥

शब्दार्थ
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