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घरती के पेंटर / चंदन द्विवेदी
Kavita Kosh से
कभी गंवई रहे
अपने पिता से
एसी कमरे में खेलती एक बिटिया ने
अनायास पूछा-क्या ये पेंटिंग है
क्या इतनी अच्छी पेंटिंग
इतने लोग एक साथ करते हैं पापा?
पिता का जवाब था
हाँ बेटा, ऐसा ही है
ये पेंटर ही धरती के भगवान हैं
इनसे ही धरती है, खेतों में धान है
खेतों के किनारे जो बांस है
इनसे रोजी रोटी है, सांस है
इनकी हर मौसम से ठनती है
जब ईश्वर इनके साथ होता है
तब ऐसी सुन्दर पेंटिंग बनती है
आप जो कुछ खाते हैं
आशियाँ बनाते हैं
हंसते हैं, खिलखिलाते हैं
और अंत में जब इस जहाँ से जाते हैं
तो ये पेंटिंग और पेंटर ही काम आते हैं