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घरां बैठ के ग्रंथ बणा ले झूठ चलावण लागे / मुंशीराम जांडली

घरां बैठ के ग्रंथ बणा ले झूठ चलावण लागे
जीभ चटोरे ऊत लुटेरे जाल फैलावण लागे

विध्यांचल पर्वत पै तप करै पारासुर ब्रह्मचारी,
पारासुर का पारा ले कै लेग्या काग उडारी,

पारा घुटग्या मछली गिटगी लागे जाळ शिकारी
उस मछली कै पैदा होगी मछोदर राज कुमारी
मीन ओर मिंडक किच्छु मिलकै लड़की जमावण लागे
ब्रह्म पारासुर लड़की तै भोग करावण लागे

अंजली देवी गुरु बणा कै बेठी रही ध्यान म्हं
शिवजी नै गुरु मंत्र दे दिया मारी फूंक कान म्हं
बजरंग बली होए मां अंजनी कै बंदर किसी श्यान म्हं
हनुमान का पिता पवन जो चालै रोज जिहान म्हं
गोतम के घर चंद्रमा कै स्याही लावण लागे

उधालक ब्रह्माचारी नै दरिया म्हं फूल तिराया
फूल केतकी राजकुमारी चंद्रवती नै ठाया
सुतरा लाग्या बहोत घणा लिया उठा नाक कै लाया
नास केत ब्रह्मचारी का नासां का जन्म बताया
श्रृंगी ऋषि सींग म्हं होगे सींग हिलावण लागे
आंख नाक ओर कान सींग म्हं पुत्र जमावण लागे

लंकापति कै बीस भुजा दस शीश बता राखे सैं
भस्मासुर नै शिवजी विष्णु बहु बणा राखे सैं
बाणासुर कै लाख हाथ कई पहाड़ उठा राखे सैं
राजा सुगड़ कै पुत्र साठ हजार जमा राखे सैं
वासुदेव के कृष्ण नै तुम जार बतावण लागे
कहै “मुंशी राम जाण्डली” आळा पोप भकावण लागे