भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घरी घरी पै ईसुरी, घरी सौ दृगन दिखात / ईसुरी
Kavita Kosh से
बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: ईसुरी
घरी घरी पै ईसुरी, घरी सौ दृगन दिखात,
मुईयाँ बाँके छेल की, नजर न भूलत रात।
ऑखियाँ तरसें यार खाँ कबै नजर मिल जाय,
नजर बचा के ईसुरी रजऊ बरक कड़ जाय।
तरै तरै के करत हैं, तेरे ऊपर प्यार,
हमहँ अकेले एक हैं, रजऊ की दमके यार।
घातें सबई लगाँय हैं, घर खोरन की कोद,
ईसुर डूबे रस-रँगन, और न पावै सोद।