घरों की कभी वो बनावट न देखी / मधुभूषण शर्मा 'मधुर'
घरों की कभी वो बनावट न देखी ,
कि आती जहां मुस्कराहट न देखी !
किसी आगमन का न होगा अँदेशा ,
तभी द्वार पर छटपटाहट न देखी !
तनावों भरे होंठ शालीनता के ,
कसे तो रहे , कसमसाहट न देखी !
पनपती वहां बांझ-सी इक शिथिलता ,
कि कोई जहां कुलबुलाहट न देखी !
अड़ोसी-पड़ोसी करें क्यूं न बातें ,
कि होती कभी बड़बड़ाहट न देखी !
सुरक्षित अगर चाबियां चेहरों की ,
झलकती वहां तिलमिलाहट न देखी !