घर-आङन: मातृका गेसाउनि / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
करब प्रणाम गोसाउनि जननिक जनी जति जात देवि
जनिक कोर बसि वर्णमातृका पढ़ि बढ़ि अक्षर डेबि
पितृजननि माँ, बा-युग पद जत पूजित-चरणा धन्य
गंगा सन पवित्र, गौरी-सुचरित्र, मातृगण अन्य
शुचि भय रुचि दय सूनि गोसा´िक नाओं, नीपि चिनुआर
पूजि गोसाउनि, तुलसी चौड़ा संध्या दीप उदार
भानस - भात, शिशुक परिपालब, डेबब घर - परिवार
सिबिया - बुनिया, सीकी - मौनी, अइपन-पुरइन द्वार
कुशल रीति व्यवहार लूरि जत टकुरी चर्खा ताग
गीत-नाद पावनि-तिहार गबइत हकार अनुराग
लज्जा शील रूप गुन भूषन, पर-पाहुन सत्कार
पढ़ितहुँ लिखितहुँ नगर परिचितहुँ अमिट गाम संस्कार
भाइ - बहिनि, सुत-सुता मूल-शाखा सन्तति-सन्तान
सासु-वधू भाउजि-ननदिक मत प्रीति रीति परमान
जा धरि प्रतिभारत भारत जा धरि शिथिला मिथिला न
आर्य सनातन संस्कृत-संस्कृति विरत गाम-महिला न