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घर-2 / शंख घोष / प्रयाग शुक्ल
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जो चाहे आना उसको लाना
जो चाहे आना उसको लाना
जो चाहे आना उसको लाना
उसको बुलाना
घर के ही आसपास कितने तो लोग
जो जाए दूर बहुत दूर बहुत दूर
जाए घूमे-फिरे
उसको लाना घर लाना घर लाना
घर के ही पास में है घर के ही लोग
फिर क्यों जाते-जाते उल्टी दिशा में
उल्टी दिशा में
चाहो तुम दल-बाँध घर ही जलाना?
मूल बंगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल
(हिन्दी में प्रकाशित काव्य-संग्रह “मेघ जैसा मनुष्य" में संकलित)