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घर आ जा, घिर आए बदरा साँवरिया / शैलेन्द्र
Kavita Kosh से
घर आ जा घिर आए बदरा, साँवरिया !
मोरा जिया करे धक-धक रे, चमके बिजुरिया
सूना-सूना घर मोहे डसने को आए रे
खिड़की पे बैठी-बैठी सारी रैन जाए रे
टिप टिप सुनती मैं तो भई रे बावरिया
घर आजा घिर आए...
कसमाता जियरा कसक मोरी दूनी रे
प्यासी-प्यासी अँखियों की कलियाँ है सूनी रे
जाने मोहे लागी किस बैरन की नजरिया
घर आजा घिर आए...
(फ़िल्म ’छोटे नवाब’ के लिए)