भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घर की तसल्लियों में जवाज़-ए-हुनर तो है / जावेद नासिर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घर की तसल्लियों में जवाज़-ए-हुनर तो है
इन जंगलों में रात का झूठा सफ़र तो है

जिस के लिए हवाओं से मुँह पोंछती है नींद
इस जुरअत-ए-हिसाब में ख़्वाबों का डर तो है

खुलती हैं आसमाँ में समुंदर की खिड़कियाँ
बे-दीन रास्तों पे कहीं अपना घर तो है

रौशन कोई चराग़ मज़ार-ए-हवा पे हो
पल्कों पे आज रात ग़ुबार-ए-सहर तो है