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घर की तसल्लियों में जवाज़-ए-हुनर तो है / जावेद नासिर

घर की तसल्लियों में जवाज़-ए-हुनर तो है
इन जंगलों में रात का झूठा सफ़र तो है

जिस के लिए हवाओं से मुँह पोंछती है नींद
इस जुरअत-ए-हिसाब में ख़्वाबों का डर तो है

खुलती हैं आसमाँ में समुंदर की खिड़कियाँ
बे-दीन रास्तों पे कहीं अपना घर तो है

रौशन कोई चराग़ मज़ार-ए-हवा पे हो
पल्कों पे आज रात ग़ुबार-ए-सहर तो है