भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घर की तू-तू मैं-मैं, बाहर के लोगों तक आ पहुँची / जहीर कुरैशी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


घर की तू-तू ,मैं-मैं, बाहर के लोगों तक आ पहुँची
अणु-सी छोटी बात, अंत में, विस्फोटों तक आ पहुँची

सुन्दर और असुन्दर को हम चमड़ी से तय करते हैं
सुन्दरता की प्रचलित भाषा गोरों तक आ पहुँची

एक समय वो भी था जब थे राजनीति में क़द वाले
गिरते-गिरते राजनीति की छत बौनों तक आ पहुँची

पहले चोरी और डकैती दोनों अलग कलाएँ थीं
जाने कैसे आज डकैती भी चोरों तक आ पहुँची

तन खरीद लेते थे लेकिन मन ख़रीदना मुश्किल था
अब तो आत्मा की खरीद भी कुछ नोटों तक आ पहुँची