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घर की पुरा-कथाएँ / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
सुना रहा है
आँगन सूना
घर की पुरा-कथाएँ
गाथा कहता तब की
जब यह चौखट थी वरदानी
रोज़ सबेरे
बाबा गाते थे संतों की बानी
रहती थीं तब
घर के भीतर
पुरखिन सुखी दुआएँ
दादी रोज़ चढ़ाती थीं
तुलसीचौरे पर पानी
सई-साँझ अम्मा करती थीं
तारों की अगवानी
दिन कितने
सुख के थे वे
हम कैसे तुम्हें बताएँ
अब तो बरसों से छाई है
आँगन में वीरानी
घर की ड्योढ़ी हुई पराई
हवा बही अनजानी
आसपास के
आँगन टूटे
उन पर बनीं गुफाएँ