भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घर के फूल / रमेश तैलंग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बाग़ के फूल-
गुलाब, जूही
हम हैं घर के फूल ।

गूँजे हमारी जब किलकारी
ख़ुशियाँ हम पर जाएँ वारी
दुखड़े जाएँ ।
जग के भूल
हम हैं घर के फूल ।

हम न चाहें जहान की दौलत
बस, थोड़ा सा प्यार मोहब्बत
मिल जाए तो
कर लें कबूल
हम हैं घर के फूल ।