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घर को ही कश्मीर बना / रवीन्द्र प्रभात
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कैनवस पर अब चीड़ बना,
घर को ही कश्मीर बना।
सत्ता के दरवाज़े पर ना
बगुले की तसवीर बना।
झूठ-साँच में रक्खा क्या
मेहनत कर तकदीर बना।
रोज़ धूप में निकल मत
चेहरे को अंजीर बना।
एटम-बम से हाथ जलेंगे
प्यार की इक तासीर बना।
सूरज सिर पर आया है
मन के भीतर नीर बना।
अदब के दर्पण में 'प्रभात'
ख़ुद को ग़ालिब-मीर बना।