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घर क्या-क्या नहीं होता? / रमा द्विवेदी

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घर सिर छिपाने के लिए भी होते हैं,
घर रिश्ते बनाने के लिए भी होते हैं।
घर क्या-क्या नहीं होता?
घर ज़िन्दगी जलानें के लिए भी होते हैं।

घर में ही जन्नत भी होती है,
घर से ही जीवन में रंगत भी होती है।
घर में ही ज़िन्दगी सिसकती हैं यहां,
घर में ही ज़िन्दगी दफ़न भी होती है॥

घर ही नहीं बिकते यहां,
इनमें रहने वाले भी बिक जाते हैं।
रोज होता है सौदा ज़िन्दगी का यहां,
घर में रहने वाले हैवान भी बन जाते हैं॥

घर ज़िन्दगी का रक्षक भी है,
घर ज़िन्दगी का भक्षक भी है।
घर क्या-क्या नहीं निगल जाता,
घर ज़िन्दगी का तक्षक भी है॥