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घर घर दीप जले / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ

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घर घर दीप जले।
एक लौ जागी दूजी जागी
जगमग ज्योति जले॥
कंडीलों में दीप टंगे हैं
इन्द्र धनुष के रंग रंगे हैं।
बच्चों के मन में तो सौ सौ
सुन्दर स्वप्न पले॥
फुलझड़ियों के झरने झरते
और पटाखे पट-पट करते
लगते 'जैट' भले॥
पर्व ज्योति का आया है लो
पूजन लक्ष्मी जी का कर लो
करो प्रार्थना दीपों का यह
एक वर्ष तक प्यार मिले॥