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घर तो है / राजूराम बिजारणियां
Kavita Kosh से
अगूणै गाळै
गांव रै गोरवैं
अबा‘र उतरयो
गाडै सूं
अेक-अेक कर
लटरम-पटरम
देखतां देखतां
बदळयो रूप!
आंटी-टूंटी लकड़यां
उठावती सिर
ऊंचायो तिरपाल
संभाळयो भार
छात रो...
...छात हेठै
घणै गुमेज
मारी बिसूणी
धणी लुगाई
टाबर-टोळी
सूरज सूं
लगावता होड़!
होडाहोड झाल हाथ
मार फदाक
ढळया पड़ाल
चकलो-बेलण।
खुणचअेक आटो
छोड़ पींपो
भरी छळांग
रेत रमण...
काणै गंडक
लपकारी जीभ
ल्यायो चेप
लियो सुवाद...
अबै..आटो कठै.?
भाटां जोड़ी कांगसी
बणग्यो चूल्हो...
...चूल्हो
देखै मूंडो
खुल्लो खुल्लो
टाबरां रो.!
...टाबर जोवै
कदै ई चूल्हो
कदै ई पींपो
कदै ई लपरी जीभ
गंडक री.!
आंटी लकड़यां
चकलो-बेलण
पींपो-चूल्हो
धणी-लुगाई
टाबर टोळी!
मंडतो खिंडतो
खिंडतो मंडतो
पूरो-सूरो
...घर तो है!