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घर पड़ोसी का जला, हम चुप रहे / विजय किशोर मानव
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घर पड़ोसी का जला
हम चुप रहे
गांव पूरा चुप रहा कोई नहीं बोला।
दस्तकें देता रहा
पहरों खड़ा कोई
चीख़-चुप्पी से लिपट कर
रातभर रोई
खिलखिलाया खूब
ज्वालामुखी रह-रह कर
एक पिंजरे ने
अकेले यातना ढोई
धुएँ में घुट-घुट मरी मैना मगर
सभ्य पालनहार ने पिंजरा नही खोला।