भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घर पर सभी कहते हैं / मुकेश जैन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घर पर सभी कहते हैं

घर पर सभी कहते हैं
तुम देर से उठने लगे हो

मैं आज भी छह बजे उठता हूँ
लेकिन,
लेटा रहता हूँ
और, सोचता रहता हूँ
तुम्हारे-अपने बारे में.

सभी कहते हैं
तुम्हें क्या हो गया है
पुकारने पर सुनते नहीं

अपने में ही-
कभी मुस्कराहट
कभी उदासी
मैं नहीं जानता
कि
ऎसा क्यों होता है .

रचनाकाल : 22/नवम्बर/1987