भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घर मांय अकाळ / मधु आचार्य 'आशावादी'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बाप रै सागै
घर मांय रैवता तीन भाई
साथै रैवता सगळां रा
टाबर अर लुगाई
घणो हेत
लोगां साम्हीं जतावता
घर मांय रमता हा राम
स्वास्थ री बात
उणां पीढया हुयगी
हेत तो उण घर रै
कण-कण मांय मिलसी।
पण उण दिन
बाबोसा नै सौ बरस हुयग्या
इयां लाग्यो
जाणै सगळां रा माईत
अेकै सागै मारग्या।
घर मांय मचग्यो घमसाण
सगळां रै लागगी लाव-लाव
किणनै किŸाो मिलसी
हरेक रै मुंडै माथै
फगत ओ इज सवाल
इण झौड़ पछै
घर मांय पड़गी भींतां
सगळा हुयग्या न्यारा-न्यारा
बस आप-आप रा
लागण लाग्या प्यारा।
घर रो राम रूसग्यो
इणी खातर उण घर मांय
हेत रो
खुसी रो
अकाळ पड़ग्यो।