भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घर में माँग पसार के बेटी / सिलसिला / रणजीत दुधु

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घर में माँग पसार के बेटी बइठल इंतजारी में
कहिया बराती आके लगतइ बाबा के दुआरी में।

धन संपत्ति सब बेचे ले बाबा हथ लाचार
चुटकी भर सेनूर ले लड़का न´ होवे तइयार।

कतना दुखवा देलियो जी बाबा तोरा हम बुढ़ारी में
घर में माँग पसार के बेटी बइठल इंतजारी में।

अँखियो से न´ सूझऽ हको देहियो न´ करऽ हो काम
छाता-पैना लेके बाबा घुम रहला हन गामे गाम।

घुमइत घुमइत थकला जी बाबा जिल्ला आऊ जबारी में
घर में माँग पसार के बेटी बइठल इंतजारी में।

घर से निकलऽ हका बाबा लेके कतना आशा
एगो गाँव के बाबू साहब देलखिन हन दिलासा।

कतना दिनमा बितलो जी बाबा अगुआ के बेगारी में
घर में माँग पसार के बेटी बइठल इंतजारी में।

अपन बेटा के मोल करे हे जइसे हे बइलवाना
लड़की परी सन हे लड़का भँइस जइसन काला।

कइसन दुरदिन आ गेलइ हे आय के बरतुहारी में
घर में माँग पसार के बेटी बइठल इंतजारी में।