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घर में रमती कवितावां 19 / रामस्वरूप किसान

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टपकती छात तळै
बर्तणां रौ संगीत
कूंट मांय दुबक‘र
सारी रात एकली सुण्यौ
म्हारा मीत

अब तो आज्या परदेस सूं
चौमासौं नीं कटै।