Last modified on 17 अक्टूबर 2013, at 14:33

घर में रमती कवितावां 19 / रामस्वरूप किसान

टपकती छात तळै
बर्तणां रौ संगीत
कूंट मांय दुबक‘र
सारी रात एकली सुण्यौ
म्हारा मीत

अब तो आज्या परदेस सूं
चौमासौं नीं कटै।