भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घर में रमती कवितावां 21 / रामस्वरूप किसान
Kavita Kosh से
एक दिन
आंगणौ
गळगळौ होय‘र
छात नै बोल्यौ-
तळै आज्या
छात बोली
ऊपर आज्या
जुग बितग्या
ना आंगणौं
ऊपर गयौ
ना छात
तळै आई
इण नै ई तो कैवै
जुदाई।