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घर में रमती कवितावां 28 / रामस्वरूप किसान

म्हैं, बां रै
घर में
बड़ तो गयौ
पण
निकळण खातर
हेलौ मारणौं पड़यो

घर में के
चूंध्या करै आदमी ?